अब के जो ना संभले तो फिर जायेंगे चूक
सावन के आस में क़ब तक धरती उठाये हूक
कही खेत हुई रेगिस्ता इतनी कड़ी है धूप
तो कहीं मई महीना दिखाती बर्फ़बारी का रूप !
पटाखे और बम फोरने से ग़र ख़ुश देवी होतीं,
तो सीरिया में इस तरह इंसानियत ना रोती!
विडम्बना है की धर्म को हम तत्वतः समझते नहीं,
और कोई सदगुरु जो समझा दे उसको तरसते नहीं!
सावन के आस में क़ब तक धरती उठाये हूक
कही खेत हुई रेगिस्ता इतनी कड़ी है धूप
तो कहीं मई महीना दिखाती बर्फ़बारी का रूप !
पटाखे और बम फोरने से ग़र ख़ुश देवी होतीं,
तो सीरिया में इस तरह इंसानियत ना रोती!
विडम्बना है की धर्म को हम तत्वतः समझते नहीं,
और कोई सदगुरु जो समझा दे उसको तरसते नहीं!
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