Saturday 25 November 2017

विडम्बना

अब के जो ना संभले तो फिर जायेंगे चूक
सावन के आस में क़ब तक धरती उठाये हूक

कही खेत हुई रेगिस्ता इतनी कड़ी है धूप
तो कहीं मई महीना दिखाती बर्फ़बारी का रूप !

पटाखे और बम फोरने से ग़र ख़ुश देवी होतीं,
तो सीरिया में इस तरह इंसानियत ना रोती!

विडम्बना है की धर्म को हम तत्वतः समझते नहीं,
और कोई सदगुरु जो समझा दे उसको तरसते नहीं!

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