Friday 24 May 2019

धन्यवाद भारतवर्ष !

जितना सोचा न था, उससे ज़्यादा दिया है तूने,
मेरे हमवतन, तिरंगे को और ऊंचा किया है तूने!

नयी जोश, नयी सोच, ये नयी रीत है,
अपनी जाति नहीं, सिर्फ़ वतन से प्रीत है!

जो  भ्रस्ट  हैं, वे सदा भयभीत हैं, 
जो ईमानदार हैं, उनकी जीत है!

भगवे से सारा हिन्दुस्तान रंगा है,
हिमालय से निकली नयी गंगा है!

दशकों से हमें सिर्फ़ उम्मीदें मिली है,
अब सहूलियतों की कमल खिली है!

दिलों में स्वार्थ नहीं, राष्ट्रवाद पल रहा है,
दुनिया के नक़्शे पर मेरा देश बदल रहा है!


- आशुतोष कुमार चौधरी 

Friday 17 May 2019

I share

The personal angst, the despairs across times, I bear
The way situations came about, the way things turned out, I share 

Having seen the burden of young son's death on an elderly father,
I feel falling apart into pieces like a mud house which can't adhere.

The bride in palanquin leaving her Dad's door, is unknown to me,
But still, I don't know why the flood of emotions appear. 

Since the day, I came into the holy ascetic's glare,
Night and day, within me, the spiritual ecstasies flare.

Even the air I breathe disturbs my tranquility,
I don't live in this world but still live here.

-Ashutosh Kumar

Thursday 16 May 2019

कहे जाता हूँ

कुछ अपने ग़म, कुछ वक़्त के सितम, सहे जाता हूँ मैं,
कुछ आप बीती, कुछ जग बीती, कहे जाता हूँ मैं !

देखा जो बूढ़े बाप के कंधे, जवान बेटे की रुक्सत का बोझ,
रह रह कर मिट्टी के मकान की तरह ढहे जाता हूँ मैं !

वो डोली जो चौखट से उठने को है, किसी अपने की नहीं,
फिर भी रह रह कर भावनाओं में बहे जाता हूँ मैं !

जब से एक नूरानी निगाह डाली है उस फ़क़ीर ने मुझ पर,
दिन रात रूहानी मस्ती में लहे जाता हूँ मैं !

विश्रान्ति ऐसी कि साँस लेना भी बोझ लगता हैं अब मुझको,
न रहकर भी इस दुनिया में रहे जाता हूँ मैं !

- आशुतोष चौधरी

दोहे -गीता सार

      आगे  की  चिंता  करे,  बीते पर  क्यों रोय भला हुआ होगा भला, भला यहॉँ सब होय।   लेकर कुछ आता नहीं,  लेकर कुछ न जाय  मानव फिर दिन रात ही,...