Thursday 21 December 2017

खोने लगा है

जो यकीं था मुझको कल तक, अब वो खोने लगा है
मुस्कुराता रहता था जो अक्सर, अब वो रोने लगा है !

जब तक हसरतें जवाँ थी, दुनिया हसीं थीं
वादों का जो गुलदस्ता था, अब वो कोने लगा है !

पहले दिन कहो तो दिन थी, रात कहो तो रात थी
फूल झड़ते थे लवों से जो, काँटा बन अब वो चुभोने लगा है !

दो जिस्म एक जान, आत्मा भी एक हो गयी थी शायद
पता नहीं फिर क्यों, अकेले अब वो सोने लगा है !

त्यौहारों के मेले अपने पराये संग चलते थे मेलों के रेले,
दूर नजदीक के सारे रिश्ते, अब वो ढ़ोने लगा है !

मुँह मीठा किये बिना घर से निकलते न थे कभी
खेतों में गन्ने की जगह करेले,  अब वो बोने लगा है !

नयी जवानी नयी उमंग धड़कने भी जवाँ थीं कभी
जाने अनजाने किये सारे गुनाह, अब वो धोने लगा है !

जिसे देवता बनाकर चाहतों ने पूजा था कभी  
मिट्टी का पुतला, फिर से, मिट्टी अब वो होने लगा है !


Monday 4 December 2017

नही रहा


मनस्वियों का सतयुग सा जपना नहीं रहा, 
तपस्वियों का त्रेता सा तपना नहीं रहा !

ढूंढ़ रहा हूँ नक़्शे में एक नया शहर, 
शहर में अपने अब कोई अपना नहीं रहा ! 

तरसते रहे नींद को हम बरसों तलक, 
अब इन आँखों में कोई सपना नहीं रहा ! 

दिल के बाजार में कही बिक गयी लैला , 
अब गलियों में मजनूँ का तड़पना नहीं रहा ! 

काली होती गयी शामें और बुझते गए दीये , 
अब बागों में जुगनुओ का पनपना नहीं रहा ! 

पहाड़ों का सीना तो हम भी चीड़ सकते थे , 
पर किसी की याद में दिल का धड़कना नहीं रहा !

-आशुतोष 

दोहे -गीता सार

      आगे  की  चिंता  करे,  बीते पर  क्यों रोय भला हुआ होगा भला, भला यहॉँ सब होय।   लेकर कुछ आता नहीं,  लेकर कुछ न जाय  मानव फिर दिन रात ही,...