Thursday 31 December 2020

सालगिरह

सोचता हूँ तेरे सालगिरह पर क्या नायाब लिक्खूँ
तुझको कली कहूँ या फ़िर खिलता ग़ुलाब लिक्खूँ

इश्क़ की सुनहरी राह और तुझसा हसीन साथी
तुझे मल्लिका-ए-हुस्न या महकता शबाब लिक्खूँ 

एक सफर है ये जिंदगी बस आज की बात नहीं
तुझ जैसे हमसफ़र के लिए रोज़ नये ख़्वाब लिक्खूँ !

#आशुतोष 
















No comments:

Post a Comment

दोहे -गीता सार

      आगे  की  चिंता  करे,  बीते पर  क्यों रोय भला हुआ होगा भला, भला यहॉँ सब होय।   लेकर कुछ आता नहीं,  लेकर कुछ न जाय  मानव फिर दिन रात ही,...