मनस्वियों का सतयुग सा जपना नहीं रहा,
तपस्वियों का त्रेता सा तपना नहीं रहा !
ढूंढ़ रहा हूँ नक़्शे में एक नया शहर,
शहर में अपने अब कोई अपना नहीं रहा !
तरसते रहे नींद को हम बरसों तलक,
अब इन आँखों में कोई सपना नहीं रहा !
दिल के बाजार में कही बिक गयी लैला ,
अब गलियों में मजनूँ का तड़पना नहीं रहा !
काली होती गयी शामें और बुझते गए दीये ,
अब बागों में जुगनुओ का पनपना नहीं रहा !
पहाड़ों का सीना तो हम भी चीड़ सकते थे ,
पर किसी की याद में दिल का धड़कना नहीं रहा !
-आशुतोष
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