धरती को यूँ रौंदा हमने, शीतल बयार मंद हो गये,
सूरज की तपिश बढ़ती गयी, बादल बनने बंद हो गये।
सूखे कुएं, सूखे पोखर, सुख गई सारी नदियाँ अब,
पानी की तलाश में बीतेंगी आनेवाली सदियाँ अब !
चलो कुछ इस कदर शहर में जंगल बसायें,
कि सृष्टि स्वयं समंदर से पानी खींच बरसाये !
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