न जाने क्यों गांव का पीपल रूठता जा रहा है,
घर घर से बुजुगों का साया उठता जा रहा है।
घर घर से बुजुगों का साया उठता जा रहा है।
बड़े बूढ़े क्या गए देवत्व चला गया,
उनके साथ मेरे गांव का सत्त्व चला गया !
उनके साथ मेरे गांव का सत्त्व चला गया !
हमारी गलतियों की ऐसी सजा न कर विधाता,
उन कर कमलो की कृपा हम पर रहने दे ये दाता।
उन कर कमलो की कृपा हम पर रहने दे ये दाता।
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