Wednesday 22 November 2017

जिंदगी

कही दो वक़्त की रोटी को है मोहताज़ जिंदगी ,
कही ब्यंजन पकवान खा बीमार जिंदगी.

कही सड़को पे पलती नवजात जिंदगी ,
कही महलों में बसती ख़ुशहाल जिंदगी.

कही दो बूँद पानी को तरसती जिंदगी ,
कही मयखानो में जाम बन छलकती जिंदगी.

कही एक सिक्के का करती इन्तेजार जिंदगी ,
कही धन के अंबार लुटाने को तैयार जिंदगी.

कही प्यार ढूँढ़ती नौजवान जिंदगी ,
कही तलाक़ मांगती परेशान जिंदगी.

कही एक नौकरी के लिए लगाती क़तार जिंदगी ,
कही मुँहमाँगे दाम पाती ब्यापार जिंदगी. 

कही एक औलाद पाने को भटकती जिंदगी ,
कही गर्भपात करा मटकती जिंदगी. 

कही दहेज़ के ज़ोर पर जलती जिंदगी ,
कही घर जमाई पर पलती जिंदगी.   

कही दोस्तों पे जान लुटाने को तैयार जिंदगी ,
कही दोस्तों से जान छुड़ाने को लाचार जिंदगी. 

कही कड़कड़ाती धूप में तलवे जलाती जिंदगी ,
कही राहों में मखमली चादर बिछाती जिंदगी.

क्यूँ हैं इतने रंग जुदा दिखाती जिंदगी ,
काश सब का जीवन एक सा बनाती जिंदगी. 

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