विश्रांति के पल - कविता, गीत, ग़ज़ल
Kavita, Geet, Ghazal by Ashutosh Kumar
Wednesday 6 January 2021
दोहे -गीता सार
Thursday 31 December 2020
सालगिरह
तुझको कली कहूँ या फ़िर खिलता ग़ुलाब लिक्खूँ
इश्क़ की सुनहरी राह और तुझसा हसीन साथी
तुझे मल्लिका-ए-हुस्न या महकता शबाब लिक्खूँ
एक सफर है ये जिंदगी बस आज की बात नहीं
तुझ जैसे हमसफ़र के लिए रोज़ नये ख़्वाब लिक्खूँ !
#आशुतोष
Saturday 17 October 2020
बॉरिस जी
सुपर पावर जितने समझते थे खुद को
कोरोना ने ला दिया है घुटने पे उन को
करना है क्या जब समझ नहीं आया जी
बोरिस ने फटाफट एक नंबर घुमाया जी
देर कर लाये लॉक डाउन के नियम जी
ICU पहुंच गये UK के पी एम जी
क्या बताये कितनी की नर्सों ने सेवा जी
बाहर आ के समझे की ये है जानलेवा जी
लॉक डाउन खोलने का जब ख्याल आया जी
बॉरिस जी ने फिर से वही नंबर घुमाया जी
दूसरे दिन ही टीवी पे आ के फिर बोले जी
चलो अब ऑफिस और मार्किट हम खोले जी
ऑफ़िस भी जाईये और घर में भी रहिये
लोगों से भी मिलिए और अकेले ही रहिये
पब्लिक ट्रांसपोर्ट को जब भी यूज़ करिये
याद रखिये हमेशा अकेले ही चलिये
रेस्टोरेंट भी जाइये पर खाना मत खाइये
८ बजे थर्सडे को ताली सब बजाइये
प्रीति जी से पूछा मैंने, ये किस्से बतीयाते हैं
डिसिजन लेने के पहले किसको फोनियाते हैं
उड़ गए होश सबके पाके ये ख़बर जी
पप्पू जी के नाम पर सेव था नंबर जी
Sunday 11 October 2020
सूर्यदेव
पहने किरणों के हार,
आइये सूर्यदेव ज़ल्दी आईये आज,
आइये सूर्यदेव ज़ल्दी आईये आज!
इतने दिनों से जो प्यासी हैं व्रती आई हैं,
अपने पति और बच्चे भी संग लायीं हैं,
आ जाइये जल्दी से, न देर लगाइये आज,
आइये सूर्यदेव रखिये भगतों की लाज,
आइये सूर्यदेव जल्दी आईये आज!
हमने फलों और फूलों से सजा दी है घाट,
देखूं अर्घ्य ले के हाथों में कब से तरी बाट,
हम सब भक्तों के प्रभुजी, पूरण कीजिये काज
आइये सूर्यदेव अर्घ्य लीजै महाराज,
आइये सूर्यदेव ज़ल्दी आईये आज!
सात घोड़े पे सवार,
पहने किरणों के हार,
आइये सूर्यदेव ज़ल्दी आईये आज,
आइये सूर्यदेव ज़ल्दी आईये आज!
Saturday 10 October 2020
देव होली
क्षीर सागर में लेटे विष्णु, नाचे देवो की टोली !
कृष्ण ने भी गोपियों संग ब्रिज में है रंग घोली,
हनुमान ने राम जी की भक्ति में खुद को भिंगोली !
इन्द्र ने भी स्वर्ग में भर दी अफ्सराओ की झोली,
ब्रह्मा जी ने आज ज्ञान की नयी शाखा है खोली !
आओ दिल से मिलायें दिल, रंगों से मिलायें रंग,
बीती ताहि बिसारी दे, जो हो ली सो हो ली !
- आशुतोष कुमार
Sunday 27 September 2020
पहल
क्यूँ ऐसे हो गए मेरे गाँव के हालात !
आज बुज़ुर्गों का ज़माना याद आता है,
पांच गाँव का साथ खाना याद आता है !
एक दूसरे से लोग रूठते गये,
नादानियों में घर टूटते गये !
समस्याओँ को साथ मिलकर हल करना होगा,
कोई और करें न करें, हमें पहल करना होगा!
खोया हुआ संस्कार हमें वापस लाना होगा,
अपने गाँव को बिखरने से बचाना होगा!
Tuesday 7 July 2020
अइसे न हम भटकती - गीत (बज्जिका, भोजपुरी)
अइसे न हम भटकती रहती जे गांव में
घुटघुट के हम न मरती रहती जे गांव में
अइसे न हम भटकती रहती जे गांव में
घुटघट के हम न मरती रहती जे गांव में
घुटघट के हम न मरती रहती जे गांव में
चलते ई पापी पेट के, घर द्वार सब छुटल
चलते ई पापी पेट के, घर द्वार सब छुटल
दिन रात खटत रहली, कही चैन न मिलल
मज़लिस हम लगईती पीपर के छांव में
पुरवईया हवा खईती पीपर के छांव में
सुनती न गारी बात हम रहती जे गांव में
घुट घट के हम न मरती रहती जे गांव में
विपत्त जब पड़ल कौनो राह न सुझल
विपत जब पड़ल कोनो राह न सुझल
पैदल चलते चलते लड़िकन के दम घुटल
छाला है अब परल किस्मत के पाँव में
छाला है अब परल किस्मत के पाँव में
घुट घट के हम न मरती रहती जे गांव में
अइसे न हम भटकती रहती जे गांव में
अइसे न हम भटकती रहती जे गांव में
घुट घट के हम न मरती रहती जे गांव में
घुट घट के हम न मरती रहती जे गांव में
Sunday 5 July 2020
ओ गुरुवर मेरे - गीत
तरस गयीं अँखियाँ दरस को तेरे, ओ गुरुवर मेरे
मेरे राम तुम, मेरे श्याम तुम, ओ गुरुवर मेरे
तरस गयीं अँखियाँ दरस को तेरे, ओ गुरुवर मेरे
साँसों की माला पे करता रहूँ मैं तेरा सुमिरन
तेरे ही चरणों में लगा रहे ये मेरा मन
साँसों की माला पे करता रहूँ मैं तेरा सुमिरन
तेरे ही चरणों में लगा रहे ये मेरा मन
मेरे राम तुम, मेरे श्याम तुम, ओ गुरुवर मेरे
तरस गयीं अँखियाँ दरस को तेरे, ओ गुरुवर मेरे
ब्रह्म ज्ञान का रस तूने सबको पिलाया
भटकते जीवों को शिव से तूने मिलाया
ब्रह्म ज्ञान का रस तूने सबको पिलाया
भटकते जीवों को शिव से तूने मिलाया
मेरे राम तुम, मेरे श्याम तुम, ओ गुरुवर मेरे
तरस गयीं अँखियाँ दरस को तेरे, ओ गुरुवर मेरे
ओ गुरुवर मेरे,
ओ गुरुवर मेरे
Tuesday 24 March 2020
भगत सिंह
शहीदों का जब भी, कहीं ज़िक्र आया,
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
शहीदों का जब भी, कहीं ज़िक्र आया,
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया !
गुलामी की बेड़ी में जकड़ा था भारत,
गुलामी की बेड़ी में जकड़ा था भारत,
अहिंसा की बातें लगी जब तिज़ारत,
क्रांति का तूने बिगुल था बजाया,
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया!
साइमन कमीशन से थी लड़ाई,
साइमन कमीशन से थी लड़ाई,
लाला जी ने अपनी जान गँवाई,
जान गँवाई
उनकी शहादत का बदला चुकाया,
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया!
जब जन विरोधी, थे कानून आये,
थे कानून आये.
असेम्ब्ली में दत्त संग, बम थे चलाये,
आंदोलन का जिसने रुतबा बढ़ाया,
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया !
सुखदेव और राजगुरु जैसे साथी,
हँसते हुए चढ़ गए संग फाँसी,
हँसते हुए चढ़ गए संग फाँसी,
सुखदेव और राजगुरु जैसे साथी,
हँसते हुए चढ़ गए संग फाँसी,
इन आँखों में है लहू भर आया,
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया!
शहीदों का जब भी, कहीं ज़िक्र आया,
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया !
-आशुतोष कुमार
Thursday 18 July 2019
बूँदों का घर
ढूँढा गाँव गाँव, खोजा शहर शहर,
जाने कहाँ गये वो झील, वो पोखर,
जिधर देखा, बस दीवार ही दीवार आई नजर,
आख़िर लूटा किसने, बारिश की बूँदों का घर,
ठहरे तो ठहरे कहाँ, बसे तो बसे किधर,
रास्तों पर भटकती, पहुँचती नदी के दर,
समेटे यादें मिट्टी की, अपने ब्यथित मन के अंदर,
नदी में गिरती पड़ती, मज़बूर जाने को समन्दर,
थी उसकी अभिलाषा रहूँ, निज निलय में जीवन भर,
अनवरत आँसू उसके, रख देते पयोधि को खारा कर,
फिर जब प्यासी धरती पुकारती तड़प तड़पकर,
नभ में उठती जाती बूंदें, रश्मि रथ पर चढ़कर,
महीनों चलता यह क्रम, तब बनते बादल गगन पर,
फिर जाकर बरसती घटायें, सावन भादो बन कर,
तपती धरणी पे शीतल बूँदें, जब पड़ती झम झम कर,
कहीं सीप में बनते मोती, नाचे मोर कहीं छमछम कर,
कुछ ही देर में सारी बूंदें, छा जाती धरा पर,
घर वापसी की खुशी, टिक न पाती ज़रा पर,
खोजती खोजती थक जाती, मिलता नहीं उसका घर,
बाढ़ न लाये तो फिर, आखिर क्रोध जताये क्या कर,
पहल सबको करना होगा, निर्विलम्ब जतन कर,
कैसे भी हो देना ही होगा, बूँदों को एक नया घर!
-आशुतोष कुमार
Friday 24 May 2019
धन्यवाद भारतवर्ष !
मेरे हमवतन, तिरंगे को और ऊंचा किया है तूने!
अपनी जाति नहीं, सिर्फ़ वतन से प्रीत है!
जो ईमानदार हैं, उनकी जीत है!
हिमालय से निकली नयी गंगा है!
अब सहूलियतों की कमल खिली है!
दुनिया के नक़्शे पर मेरा देश बदल रहा है!
Friday 17 May 2019
I share
Thursday 16 May 2019
कहे जाता हूँ
कुछ आप बीती, कुछ जग बीती, कहे जाता हूँ मैं !
देखा जो बूढ़े बाप के कंधे, जवान बेटे की रुक्सत का बोझ,
रह रह कर मिट्टी के मकान की तरह ढहे जाता हूँ मैं !
वो डोली जो चौखट से उठने को है, किसी अपने की नहीं,
फिर भी रह रह कर भावनाओं में बहे जाता हूँ मैं !
जब से एक नूरानी निगाह डाली है उस फ़क़ीर ने मुझ पर,
दिन रात रूहानी मस्ती में लहे जाता हूँ मैं !
विश्रान्ति ऐसी कि साँस लेना भी बोझ लगता हैं अब मुझको,
न रहकर भी इस दुनिया में रहे जाता हूँ मैं !
- आशुतोष चौधरी
Tuesday 9 April 2019
होली
साथ निभाने वाली हर दस्ते को सलाम !
ये साक़ी तेरे मयख़ाने को सलाम,
जाम से भरे हर पैमानें को सलाम !
जनम जनम से प्यासी है ये रिंदो की टोली,
ये साक़ी अंगूर के रस में मिला के ला भाँग की गोली !
ख़ाली न जाये तेरे महफ़िल से कोई भी साक़ी,
पिलाता रह जब तक एक क़तरा भी है बाक़ी !
नस नस में हो इक तहलका
सा,
कदम भी लड़खड़ाये हल्का सा!
ग़म की बीती यादों को मारो गोली,
मायूसी छोड़ो, जो हो ली सो हो ली !
बहार
मुद्दतों बाद इस आँगन में बहार आई है!
बागों में सिर्फ गुलों के मेले नहीं आये,
रंग बिरंगे पक्षियों की कतार आई है!
हवा में बस खुशबू के रेले नहीं आये,
पेड़ों पे जवानी फिर एक बार आई है!
उन ठिठुरती रातों के दिन अब गए,
धूप की नयी चादर दो चार आई है!
सिर्फ अरमानो का सूरज ही नहीं आया,
हौसलों की बारिश मूसलाधार आई है!
-आशुतोष
Saturday 16 February 2019
पुलवामा के शहीद
यूँ तो जाँ हथेली पे ले के घूमते थे हम,
पर इक़ बात का हमें रह गया ग़म,
ग़र लड़ते लड़ते जाते, तो कुछ और बात होती,
बीस तीस मार गिराते, तो कुछ और बात होती!
वो कायर मुँह छुपा कर पीछे से आते हैं,
निहत्थों पर आतंक बरपा के जाते हैं,
बलिदान तो देनी थी हमें, पर यूँ नहीं,
जान तो देनी थी हमें, पर यूँ नहीं !
शांति वार्ता नहीं, अब युद्ध करो,
आतंक का हर मार्ग अवरुद्ध करो,
काट डालो गद्दार सपोलों को,
चलने दो तोप के गोलों को!
बन्दूकें भर भर कस लाओ,
अब एक के बदले दस लाओ,
दो उनको मौत के घाट उतार,
अबकी बार आर या पार!
-आशुतोष कुमार
Friday 31 August 2018
अटल
तू अटल था, तू अटल है, तू अटल रहेगा !
यूँ तो कई आये, कई आएंगे, राजनीती करने वाले,
पर संविधान की गरिमा में, तू अचल रहेगा !
सम्बोधनों और सभाओं में भाषा मर्यादा खो रही,
पर संसद हो या सड़क, तू कवि निश्छल रहेगा !
दल बदल के दल दल में, डूबते जाते सत्ता मोही,
घर घर कमल का फूल खिला, तू एक दल रहेगा !
देशभक्त कहलाने को, कई झूठी कस्मे खाएंगे,
पर माँ भारती के दिल में, तू हर पल रहेगा !
तू कल था, तू आज है, तू कल रहेगा !
तू अटल था, तू अटल है, तू अटल रहेगा !
- आशुतोष के श्रद्धा सुमन
Wednesday 7 February 2018
सरहद
हाथ में थी बन्दुक, पर चला न पाए !!
वो हम वतन हो के भी, हम पर पत्थर बरसाते रहे ,
हम बेबस इतने, कि उन्हें आँखें भी दिखा न पाए !
वर्दी की लाज बचाने को, हम लात घूंसे भी खाते रहे,
ख़ून खौलता रहा रगों में ,और हम ऊँगली भी उठा न पाए !
क़दम क़दम पर वो छूरा घोपने को पीठ खोजते रहे,
और हम उनकी गोलीओं से, अपना सीना छुपा न पाए !
अचानक जब सामना हुआ दहशतग़र्दों से इस बार,
धड़ें तो सारी काट दी हमने, पर जड़ तक जा न पाए !
अरे सेना को घुसकर लड़ने की अब तो इजाजत दो,
ताकि और कोई नापाक़ आतंकी, फ़िर इस पार न आए !
जा रहा हूँ दुनिया से एक यही प्रार्थना कर,
कि मेरे जाने की खबर, कोई मेरी माँ को न बताए !
जल्द लौट के आऊंगा माँ भारती की गोद में,
ख्याल रहे देशप्रेम का चिराग़, कोई बुझा न पाए !
-आशुतोष
Friday 26 January 2018
गणतंत्र
स्वतंत्रता की ईमारत शहीदों के शीश पे टिकी हैं!
भ्रस्टाचार, जातिवाद, आरक्षण से देश लुट रहा है ,
स्वतंत्र हैं हम, पर गणतंत्र का दम घुट रहा है!
वतन के रहनुमाओं के पास साज़ है, पर आग़ाज़ नहीं,
देखने को इनके सुनहरे पंख है, पर परवाज़ नहीं!
चोरो की ज़मात इकट्ठी हो गयी इस कदर,
भटकता रह न जाये देश अपना दर-ब-दर!
गली गली, घर घर में अब राष्ट्रगान चाहिए,
लहराते तिरंगे को नया आसमान चाहिए !
-आशुतोष चौधरी
Wednesday 17 January 2018
बिसरत नाहीं
मातु पितु दरस को हृदय अकुलाहीं !
ऊधो, मोहि ब्रज बिसरत नाहीं !!
ग्वाल गोप जहँ माखन खाहीं !
उन सम कहाँ सखा जग माहीं !!
सुर नर मुनि भजन जहँ गाहीं !
गुरु कृपा की जहँ अविरल छाहीं !
ऊधो मोहि ब्रज बिसरत नाहीं !
मकर संक्रांति
गुजरात भी मना रहा उत्तरायण झूम,
झारखंड में टुसु और तमिल में पोंगल,
केरल में ओणम करे सबका मङ्गल,
मीठे पकवानों की खुशबू घर घर छाई,
सब मित्रों को मकर संक्रांति की खूब खूब बधाई !
Thursday 21 December 2017
खोने लगा है
मुस्कुराता रहता था जो अक्सर, अब वो रोने लगा है !
जब तक हसरतें जवाँ थी, दुनिया हसीं थीं
वादों का जो गुलदस्ता था, अब वो कोने लगा है !
पहले दिन कहो तो दिन थी, रात कहो तो रात थी
फूल झड़ते थे लवों से जो, काँटा बन अब वो चुभोने लगा है !
दो जिस्म एक जान, आत्मा भी एक हो गयी थी शायद
पता नहीं फिर क्यों, अकेले अब वो सोने लगा है !
त्यौहारों के मेले अपने पराये संग चलते थे मेलों के रेले,
दूर नजदीक के सारे रिश्ते, अब वो ढ़ोने लगा है !
मुँह मीठा किये बिना घर से निकलते न थे कभी
खेतों में गन्ने की जगह करेले, अब वो बोने लगा है !
नयी जवानी नयी उमंग धड़कने भी जवाँ थीं कभी
जाने अनजाने किये सारे गुनाह, अब वो धोने लगा है !
जिसे देवता बनाकर चाहतों ने पूजा था कभी
मिट्टी का पुतला, फिर से, मिट्टी अब वो होने लगा है !
Monday 4 December 2017
नही रहा
मनस्वियों का सतयुग सा जपना नहीं रहा,
तपस्वियों का त्रेता सा तपना नहीं रहा !
ढूंढ़ रहा हूँ नक़्शे में एक नया शहर,
Saturday 25 November 2017
बद्दुआयें
मनके मालाओं से टूट कर बिखर रही हैं
पिरोता हूँ हर रोज इसी उम्मीद पे की निभ जाएगी जिंदगी भर
पर टूट जाती हैं फिर ज्यूँ रखता हूँ बंदगी कर
मनको की जगह अब गाठों ने ले ली हैं
गाँठें बड़ी मनके छोटी हो चली हैं
देखा है लोगो को नए धागे पिरोते
बार बार सपनो की नयी दुनिया संजोते
पर मैंने ही खुद जब ये माला चुना था
अपनों परायों से लड़ कर गुना था
कैसे पल में पराया कर दूँ उस बंधन को
जिन्दा रखा जिसने मोतियों के स्पंदन को
आँखों का हाल रेगिस्तान सा है
रेत नहीं भीतर पर भान सा है
खुली ऑंखें शब से सहर कर रही हैं,
लगता है वो बद्दुआएँ असर कर रही हैं!
Virgin train
Virgin is the train I ride every day,
Keep all luggage by my side every day!
Metro is the paper I pick every day,
Stuffs in the bin make me sick every day! :)
Train Manager wants to check my ticket every day,
Passengers want to chat about cricket every day!
Beautiful ladies looking for seat every day,
Sitting with them rises heart beat every day! :)
Half an hour at least I try to sleep every day,
In the exact time phones beep every day!
Staffs are new friends with I talk every day,
Doors of the toilet I lock every day! :)
I am first on train to get off every day,
For Victoria tube station I Set off every day!
In tube then I get squashed every day,
In sweat the deodorants get washed every day! :)
जब से
दुश्मनो से पूछ कर दोस्ती करता हूँ तब से !
प्यार में धोखे का चलन हो गया जब से,
दिल न लगाने की नसीहत देता हूँ तब से !
रिश्तेदारों ने बेबजह दुरी बढ़ा ली जब से,
आईने में खुद को ढूंढता हूँ तब से !
हाथों में पत्थर उठा लिए अपनों ने जब से,
खिरकी के पास खरा रहता हूँ तब से !
हादसे बढ़ गए हैं सडको पे जब से,
बाहर निकलने से डरने लगा हूँ तब से !
यारों के वो महफ़िल बंद हो गए है जब से,
सोशल मीडिया पे एक्टिव हो गया हूँ तब से !
हर तरफ चीखने की आवाज आने लगी है जब से,
ख़ामोशी की आवाज सुनने लगा हूँ तब से !
मंदिरों पे हो गया पुजारियों का बसर जब से ,
दिल में ही अपने खुदा रखता हूँ तब से !
-आशुतोष
सोचता हूँ क्या होगा
सोचता हूँ
वादों और जुमलों की जंग में आशाओं का क्या होगा ,
बेकाबू होते नेताओं की भाषाओं का क्या होगा !
सोचता हूँ
बॉर्डर पर कट रही सिरों के कफ़न का क्या होगा ,
पेंशन हेतु सैनिको की आमरण अनसन का क्या होगा !
सोचता हूँ
निहत्थों पर चले पुलिस के डंडे का क्या होगा ,
कश्मीर में लहरते पाकिस्तानी झंडे का क्या होगा !
सोचता हूँ
कर्जे से लड़ते किसानों की आत्महत्या का क्या होगा ,
हरित क्रांति के लिए आई सत्ता का क्या होगा !
सोचता हूँ
सूखते फसल और फिर बाढ़ की मार का क्या होगा ,
नदियों और नहरों के जीर्णोद्धार का क्या होगा !
सोचता हूँ
सच्चे संतो पर लगते आरोपों के ब्यौपार का क्या होगा ,
बिकाऊ न्यूज़ परोसती मीडिया के आचार का क्या होगा !
सोचता हूँ
प्रति दिन मजहब में बटते इंसान का क्या होगा ,
दराजों में बंद गीता बाइबिल कुर्रान का क्या होगा !!
खुदा के बन्दे
निर्दोषो को मारकर आतंक मचाने की भूख !
तेरा खुदा औरों के खुदा से है जुदा ,
हूर क्या दोज़ख भी नसीब ना हो ऐसी तेरी सज़ा !
खुदा के बन्दे ये बता कि तूने किस अंदाज में बंदगी को है ढाला ,
शैतान को पत्थर मारने की ऐसी बेताबी कि इंसान को कुचल डाला !
मीडिया
तिल का तार बना लोगों के ख़ून उबालती है!
समझ गई तेल लेने, जिसे बुद्धिजीवी वर्ग को कान में डाल सो जाना है,
राजनीती का अर्थ सच छुपाकर, सिर्फ विरोधी पर लाँछन लगाना है!
चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आवश्यकता हो राजनीती शास्त्र में पीएचडी,
और ज्वाइन करने से पहले नैतिक शिक्षा की पढाई करे सारे जन प्रतिनिधि !
लेफ़्ट की आज़ादी
पर तूने जो कुछ भी कहा उसमें नया क्या था भैया!
गरीबों के पुराने मसीहा - लालू मुलायम या फिर माया,
अलग अलग अंदाजे-बयां में सबने यही था फ़रमाया!
दशकों से यही कह कर तो लेफ़्ट वाले रोटियाँ सेंक रहे हैं,
गरीबी से आज़ादी पाई बेंगाल को सब देख रहे हैं!
सरेआम भारत सरकार को तूने मन भर सुनाई,
और कितनी आज़ादी चाहिए मेरे भाई !
और ब्राह्माणवाद से आज़ादी सुन हँसी आई बहुत जोर,
क्युकी ब्राह्मण आर्थिक रूप से आज़ सबसे है कमजोर!
और जो लोग पूंजीवाद से आज़ादी चाहते थे पहले,
वो विदेशों में खुब छुपाये और बना लिये महलें!
तू भी बैंक से लोन ले, कर धंधा तन कर,
दिमाग लगा और दिखा लोगों को अम्बानी बन कर!
जितना मीडिया तुझे चमका चुकी है लगता नहीं तू कुछ करने वाला है,
क्यूंकि इंतजार ख़तम अब कई पार्टियों से तुझे टिकट मिलने वाला है!
हमारा क्या है पहले अन्ना को देखा फिर केजरीवाल आये,
उसके बाद हार्दिक फिर रोहित और अब तुम हो छाये!
हमें नुक्कड़ पे गप मारने के लिए चाहिए नयी टॉपिक चाय और समोसे,
देश तो कल भी था राम भरोसे और अब भी है राम के ही भरोसे!
विडम्बना
सावन के आस में क़ब तक धरती उठाये हूक
कही खेत हुई रेगिस्ता इतनी कड़ी है धूप
तो कहीं मई महीना दिखाती बर्फ़बारी का रूप !
पटाखे और बम फोरने से ग़र ख़ुश देवी होतीं,
तो सीरिया में इस तरह इंसानियत ना रोती!
विडम्बना है की धर्म को हम तत्वतः समझते नहीं,
और कोई सदगुरु जो समझा दे उसको तरसते नहीं!
बुलन्दी
सितारों के बीच की चमचमाती दुनिया सच्ची नहीं होती!
या ख़ुदा शोहरत दी थी तो थोड़ी हिम्मत भी दी होती,
फिर रूठ कर इस तरह दुनिया से रुक्सत, वो बच्ची नहीं होती!
बेजुबान
मैं बेजुबान था मुझपर हि डंडों की बारिश हुई!
करता भी क्या मैं आशु, पीटता रहा सरेआम,
एक के हाथ में लाठी थी, एक के हाथ लगाम!
वैसे मेरी तरह कितने ही, जिंदा काट दिये जाते हैं हर रोज़,
निर्दोष गले पे चलती हैं आरी, कोई नहीं करता पर खोज!
चुपचाप जो गटक जाते हैं जिस्म हमारा संवेदना को छोड़,
जग गई ज़मीर उनकी, मेरी टाँग ने मचा दी शोर!
अब क़ोई ना हमें मारेगा, ना ही क़ोई काटेगा,
ना ही क़ोई इंसानों को, इंसानों से बाँटेगा !
देश बेचारा
कोई सोनिया का मारा तो कोई मोदी से हारा,
कोई डिग्री के पीछे तो किसीको सूखे का सहारा,
सब के बीच राह तकता रह गया देश बेचारा !
सस्ती चाईनीज ख़रीद अपनी तरक़्क़ी को बस कोसा हमनें,
उम्र भर की कमाई देकर दुश्मनों को बस पोषा हमने !
कितनी भी कर लो नापाक़ पाकी से वार्ता बस नाम भर ही है,
शरहदों पे कुर्बान शहीदों का लहू हमारे सिर भी है !
जितना काला धन पार्टियाँ लगा देतीं हैं दूसरों को हराने में ,
बहारें आ जायें गर उतना लगा दें वादा निभानें में !
एक ओवैसी सबको मिनटों में काट डालना चाहता है,
तो दूसरा भारत माता की जय कहना हराम मानता है,
खुद कट्टर हो दुसरो को असहिस्णु बताने वाले,
जय बोलना गर हराम हो तो माँ तुझे सलाम गा ले,
सच तो ये है की तेरी नीयत में ही खोट है,
क्यूंकि लक्ष्य तेरा सिर्फ़ माइनॉरिटी वोट है!
किसकी थी खता और किसको मिली सज़ा,
मौत बाँटते सियासत-गर्द और कहते हैं हादसा !
Thursday 23 November 2017
नोटबंदी
नया साल
चलते रहे हम
लेफ्ट राईट
Anti Social Media
Wednesday 22 November 2017
क़श्मक़श
निन्यानवे के चक्कर में कहाँ गया फँस !
घर बार छूटा रिश्ते नाते सब छूटे ,
मिले तो सिर्फ़ दिखावे के व्यवहार झूठे !
कब की छूट गयी वो बचपन की गलियाँ ,
अब तो राहों में बस सजी कागज की कलियाँ !
वो माँ संग बच्चों का गाना -दो एकम दो , दो दूनी चार ,
अब टु वन ज टू, टू टू ज फोर से हो गए पेरेंट्स बेकार !
वो डंडे से डराना ट्यूशन में सरजी का ,
पहाड़ लगे पढ़ना अब पुस्तक भी मर्जी का !
तब हर बात पे बजती थी दोस्तों की तालियाँ ,
वो बैठक वो कहकहे और वो बेबाक गालियाँ !
वो क्रिकेट के चक्कर मे देना ट्यूशन की बलि ,
अब के गोल्फ से, गिल्ली डंडा ही थी भली !
वो चित्रहार देखना पड़ोसी के घर में भागकर ,
कहना - आया हूँ दोस्त से एक बुक माँगकर !
वो खुले आसमान तले पर्दे पे फ़िल्मों का मज़ा ,
अब तो मल्टीप्लेक्स में जाना भी लगे है सजा !
वो फुटबॉल का मैच और झूमती हुयी बारिश ,
अब तो टीम बनाने को भी करनी परे गुज़ारिश !
वो धागे माँजना धूप में पतंगों के लिए ,
अब बाहर निकलना भी लगे हार्मफुल अंगों के लिए !
वो मुहल्लों को लाँघ जाना कटे पतंगों के पीछे ,
और अब उतरना भी बेकार लगे बालकनी से नीचे !
एक उमँग उठती थी कटी पतंगों की हर अंगराई पर ,
अब नज़रे उठती हैं सिर्फ़ दूसरों की बुराई पर !
वो स्कूल के डेस्क पर ज़माना गानों की महफ़िल ,
अब अग़र ग़लती से भी गुनगुनाओ तो कहलाओगे ज़ाहिल !
वो माँ का प्यार, भाई बहनों का दुलार और पिताजी की मार ,
काश वापस आ जाये वो दिन फिर से यार !
वो गलियाँ अक्सर मुझे बुलातीं हैं ,
वो मुहल्ले की नुक्कड़ अब भी याद आती हैं !
सोचता हूँ सब छोड़ उस गली का हो जाऊँ ,
उन बचपन की लम्हों को फ़िर से जी जाऊँ !
दिल और दिमाग़ में चल रही क़श्मक़श ,
अब जैसे भी हो यहाँ से निकल जाऊँ बस !
जिंदगी
कही ब्यंजन पकवान खा बीमार जिंदगी.
कही सड़को पे पलती नवजात जिंदगी ,
कही महलों में बसती ख़ुशहाल जिंदगी.
कही दो बूँद पानी को तरसती जिंदगी ,
कही मयखानो में जाम बन छलकती जिंदगी.
कही एक सिक्के का करती इन्तेजार जिंदगी ,
कही धन के अंबार लुटाने को तैयार जिंदगी.
कही प्यार ढूँढ़ती नौजवान जिंदगी ,
कही तलाक़ मांगती परेशान जिंदगी.
कही एक नौकरी के लिए लगाती क़तार जिंदगी ,
कही मुँहमाँगे दाम पाती ब्यापार जिंदगी.
कही एक औलाद पाने को भटकती जिंदगी ,
कही गर्भपात करा मटकती जिंदगी.
कही दहेज़ के ज़ोर पर जलती जिंदगी ,
कही घर जमाई पर पलती जिंदगी.
कही दोस्तों पे जान लुटाने को तैयार जिंदगी ,
कही दोस्तों से जान छुड़ाने को लाचार जिंदगी.
कही कड़कड़ाती धूप में तलवे जलाती जिंदगी ,
कही राहों में मखमली चादर बिछाती जिंदगी.
क्यूँ हैं इतने रंग जुदा दिखाती जिंदगी ,
काश सब का जीवन एक सा बनाती जिंदगी.
तेरा रस्ता देख रहा हूँ
पर तेरा रस्ता देख रहा हूँ अब भी !
हर सुबह तुझे भुलाने का भ्रम करता हूँ ,
पर हर शाम तेरी याद लेकर चली आती है !
जीवन की राहों में हैं हजारों ग़म ,
पर हर ग़म अब मुझे छोटा लगता है !
जब भी कभी कोई दिल दुखाता है ,
तेरी यादों के दामन से लिपट जाता हूँ !
आँखों से बहते अश्क़ कह उठते हैं ,
के मेरे इस हालात की वजह तू है !
पर ना जाने क्यूँ चाहकर भी मैं तुझसे नफ़रत नहीं कर पाता ,
ना जाने क्यूँ चाहकर भी मैं तुझे भुला नहीं पाता !
जानता हूँ की तूने ही मुझे ठुकराया था ,
पर अब भी तेरी यादें ही शुकुन देती है !
क्यूँ जीये चला जा रहा हुँ इसी उम्मीद पे ,
की ऐसी एक शाम आयेगी जो तुझे अपने साथ लाएगी !
न जाने क्यूँ अब भी दिल में एक आस लगी है ,
तुझसे मिलने की अमिट प्यास लगी है !
जानता हूँ की तू मुझसे जुदा होकर भी ख़ुश है ,
पर मैं तेरा रस्ता देख रहा हूँ अब भी !
हर पल दिल में एक अजीब सी कश्मक़श है ,
की काश कोई हवा का झौंका तेरी खुशबू लाये !
हर पल मन में ये अगन है ,
के काश कोई कोयल तेरी ख़बर सुनाये !
जानता हूँ की सारे रस्ते कबके बंद हैं ,
पर मैं तेरा रस्ता देख रहा हूँ अब भी !
तेरा रस्ता देखते देखते एक दिन थम जायेंगी ये साँसे ,
पर देख़ लेना बंद नहीं होंगी ये ऑंखें !
क्यूंकि तेरा रस्ता देख रहा हूँ मैं अब भी ,
और तेरा रास्ता देखता रहूँगा मैं तब भी !
कैसा कराटे
सुबह सुबह पहुँचे मेरे पास
बोले तुम हो कराटे के ज्ञाता
मुझे तो पंच चलाना भी नहीं आता
मुझे भी तुम कुछ सिखला दो ना
कैसे भी हो ब्लैक बेल्ट दिलवा दो ना
पैसा जो लगे मैं दे सकता हूँ
हौसला इतना बुलंद मैं रखता हूँ!
मैंने कहा पैसे पर सब कि नीयत ललचायी
पर मेरे पास नहीं ऐसे सेन्साई
सीखना है तो पुरुषार्थ कर सीखो
निरंतर अभ्यास कर सीखो
कंडीशनिंग करो बुंकाई करो साथ में करो काता
फिर देखो प्रैक्टिस मैं कैसा मजा है आता!
यह तो भारत की पुरानी युद्ध शैली थी
जो बाद में चीन जापान में फैली थी
चलो खूब मेह्नत करे पसीना बहाएं
स्वस्थ्य और मजबूत समाज बनाये
इस कला को फिर घर घर पहुँचाये
भारत की खोयी कला वापस ले आयें !!
Tuesday 21 November 2017
तुस्टीकरण
और गुरमेहर तेरे पिता को पाकिस्तान नहीं लड़ाई मार जाती है ?
भारत के टुकड़े करने वालों के लिए भी कुछ लिख देती,
किन कारणों से वो सही हैं जरा हमें भी सीख देती !
ऐसे ही आज़ादी मांगते मांगते कन्हैया जी छा गये,
लगता है उन्हीं के नक़्शे-कदम तुम्हें भी भा गये !
वैसे भी देखभक्ति की बात करने वाले सांप्रदायिक हो जाते हैं,
और तुस्टीकरण की राजनीती करने वाले लिबरल कहलाते हैं !
विश्व-विद्यालयों से राजनितिक पार्टियाँ हटनी चाहिए,
ये शिक्षा का मंदिर है यहाँ सिर्फ विद्या बटनी चाहिए !
पानी
बंधन
क्यूंकि रंग तेरा ज़माने से जुदा था,
कौन सी कमी मेरी नागवार गुजरी की तू रुठ गया,
गाँठ की गुंजाइश भी अब नहीं, जब बंधन ही ये टूट गया!
अनुराग
हमारी जिंदगी में आये, तुम बहार बन के !
हर मुस्कान पे तेरी, जन्नत की खुशियां कुर्बान !
ग़म की न बदरी छायें कभी, बरसे सुख घनेरे !
प्रेम अनुराग से भरी तेरी जिंदगानी रहे !
सत्त्व
घर घर से बुजुगों का साया उठता जा रहा है।
उनके साथ मेरे गांव का सत्त्व चला गया !
उन कर कमलो की कृपा हम पर रहने दे ये दाता।
दुरी
कल सुना था गाँव का एक बच्चा भूख से मर गया,
आज पता चला शहर में अनाज गोदाम में सड़ गया !
एक तरफ़ चाँद और धरती की दुरी घटती जा रही है,
दूसरी तरफ़ अनाज और पेट की दुरी बढ़ती जा रही है !
कही क़र्ज़ के बोझ तले दब भूख से मर रहा अन्नदाता किसान है,
कही कटप्पा और बाहुबली के पीछे करोड़ो लगा रहा इंसान है!
कही हीरो के पोस्टरों को दूध से यूँ नहलाये मानो भगवान है,
देख सब लगता है सचमुच मेरा देश कितना महान है।
वो मिट्टी वाले दिन
बात बात पे करते कट्टी मिठ्ठी वाले पल!
दोहे -गीता सार
आगे की चिंता करे, बीते पर क्यों रोय भला हुआ होगा भला, भला यहॉँ सब होय। लेकर कुछ आता नहीं, लेकर कुछ न जाय मानव फिर दिन रात ही,...