Wednesday 6 January 2021

दोहे -गीता सार

  

  
आगे  की  चिंता  करे,  बीते पर  क्यों रोय
भला हुआ होगा भला, भला यहॉँ सब होय।  

लेकर कुछ आता नहीं,  लेकर कुछ न जाय 
मानव फिर दिन रात ही, करे क्यूँ हाय हाय।  

जो कुछ तुमको है मिला, धरणी का वरदान
जो कुछ तुमने है दिया, मत कर उस पर आन।   

सब कुछ था जो और का, तेरा है वो आज 
होगा कल फिर और का, तेरा है जो आज।  

क्यों कर तुम हो डर रहे, काहे आपा खोय       
आत्मा तो मरती नहीं,  नाहि जन्म ही होय।  

परिवर्तन जिसका नियम, कहलाता संसार 
शाश्वत  एक  तू  ब्रह्म  है,  ये  गीता  का सार। 

Thursday 31 December 2020

सालगिरह

सोचता हूँ तेरे सालगिरह पर क्या नायाब लिक्खूँ
तुझको कली कहूँ या फ़िर खिलता ग़ुलाब लिक्खूँ

इश्क़ की सुनहरी राह और तुझसा हसीन साथी
तुझे मल्लिका-ए-हुस्न या महकता शबाब लिक्खूँ 

एक सफर है ये जिंदगी बस आज की बात नहीं
तुझ जैसे हमसफ़र के लिए रोज़ नये ख़्वाब लिक्खूँ !

#आशुतोष 
















Saturday 17 October 2020

बॉरिस जी



सुपर पावर जितने समझते थे खुद को
कोरोना ने ला दिया है घुटने पे उन को

करना है क्या जब समझ नहीं आया जी
बोरिस ने फटाफट एक नंबर घुमाया जी

देर कर लाये लॉक डाउन के नियम जी
ICU पहुंच गये UK के पी एम जी

क्या बताये कितनी की नर्सों ने सेवा जी
बाहर आ के समझे की ये है जानलेवा जी

लॉक डाउन खोलने का जब ख्याल आया जी
बॉरिस जी ने फिर से वही नंबर घुमाया जी

दूसरे दिन ही टीवी पे आ के फिर बोले जी
चलो अब ऑफिस और मार्किट हम खोले जी

ऑफ़िस भी जाईये और घर में भी रहिये
लोगों से भी मिलिए और अकेले ही रहिये

पब्लिक ट्रांसपोर्ट को जब भी यूज़ करिये
याद रखिये हमेशा अकेले ही चलिये

रेस्टोरेंट भी जाइये पर खाना मत खाइये
८ बजे थर्सडे को ताली सब बजाइये

प्रीति जी से पूछा मैंने, ये किस्से बतीयाते हैं
डिसिजन लेने के पहले किसको फोनियाते हैं

उड़ गए होश सबके पाके ये ख़बर जी
पप्पू जी के नाम पर सेव था नंबर जी

Sunday 11 October 2020

सूर्यदेव

सात घोड़े पे सवार,
पहने किरणों के हार,
आइये सूर्यदेव ज़ल्दी आईये आज,
आइये सूर्यदेव ज़ल्दी आईये आज!


इतने दिनों से जो प्यासी हैं व्रती आई हैं,
अपने पति और बच्चे भी संग लायीं हैं,
आ जाइये जल्दी से, न देर लगाइये आज,
आइये सूर्यदेव रखिये भगतों की लाज,
आइये सूर्यदेव जल्दी आईये आज!


हमने फलों और फूलों से सजा दी है घाट,
देखूं अर्घ्य ले के हाथों में कब से तरी बाट,
हम सब भक्तों के प्रभुजी, पूरण कीजिये काज
आइये सूर्यदेव अर्घ्य लीजै महाराज,
आइये सूर्यदेव ज़ल्दी आईये आज!

सात घोड़े पे सवार,
पहने किरणों के हार,
आइये सूर्यदेव ज़ल्दी आईये आज,
आइये सूर्यदेव ज़ल्दी आईये आज!

Saturday 10 October 2020

देव होली

 

शिव मेरा शमशान में खेले भस्म रमा के होली, 
क्षीर सागर में लेटे विष्णु, नाचे देवो की टोली !

कृष्ण ने भी गोपियों संग ब्रिज में है रंग घोली, 
हनुमान ने राम जी की भक्ति में खुद को भिंगोली !

इन्द्र ने भी स्वर्ग में भर दी अफ्सराओ की झोली,
ब्रह्मा जी ने आज ज्ञान की नयी शाखा है खोली !

आओ दिल से मिलायें दिल, रंगों से मिलायें रंग,
रूठे  सब अब  जायें  मिल, अंतर में छाये उमंग !

ख़ुशियों के गीत गायें मिलजुल कर हमजोली,
बीती ताहि बिसारी दे, जो हो ली सो हो ली !

- आशुतोष कुमार  

Sunday 27 September 2020

पहल

लग जाती है लोगों को छोटी सी बात,
क्यूँ ऐसे हो गए मेरे गाँव के हालात !

आज बुज़ुर्गों का ज़माना याद आता है,
पांच गाँव का साथ खाना याद आता है !

एक दूसरे से लोग रूठते गये,
नादानियों में घर टूटते गये !

समस्याओँ को साथ मिलकर हल करना होगा,
कोई और करें न करें, हमें  पहल करना होगा! 

खोया हुआ संस्कार हमें वापस लाना होगा,
अपने गाँव को बिखरने से बचाना होगा! 

Tuesday 7 July 2020

अइसे न हम भटकती - गीत (बज्जिका, भोजपुरी)

अइसे न हम भटकती रहती जे गांव में
अइसे न हम भटकती रहती जे गांव में
घुटघुट के हम न मरती रहती जे गांव में
अइसे न हम भटकती रहती जे गांव में
घुटघट के हम न मरती रहती जे गांव में
घुटघट के हम न मरती रहती जे गांव में


चलते ई पापी पेट के, घर द्वार सब छुटल
चलते ई पापी पेट के, घर द्वार सब छुटल
दिन रात खटत रहली, कही चैन न मिलल
मज़लिस हम लगईती पीपर के छांव में
पुरवईया हवा खईती पीपर के छांव में
सुनती न गारी बात हम रहती जे गांव में
घुट घट के हम न मरती रहती जे गांव में


विपत्त जब पड़ल कौनो राह न सुझल
विपत जब पड़ल कोनो राह न सुझल
पैदल चलते चलते लड़िकन के दम घुटल
छाला है अब परल किस्मत के पाँव में
छाला 
है अब परल किस्मत के पाँव में
घुट घट के हम न मरती रहती जे गांव में
अइसे न हम भटकती रहती जे गांव में
अइसे न हम भटकती रहती जे गांव में
घुट घट के हम न मरती रहती जे गांव में
घुट घट के हम न मरती रहती जे गांव में


Sunday 5 July 2020

ओ गुरुवर मेरे - गीत

मेरे राम तुम, मेरे श्याम तुम, ओ गुरुवर मेरे
तरस गयीं अँखियाँ दरस को तेरे, ओ गुरुवर मेरे
मेरे राम तुम, मेरे श्याम तुम, ओ गुरुवर मेरे
तरस गयीं अँखियाँ दरस को तेरे, ओ गुरुवर मेरे

साँसों की माला पे करता रहूँ मैं तेरा सुमिरन
तेरे ही चरणों में लगा रहे ये मेरा मन
साँसों की माला पे करता रहूँ मैं तेरा सुमिरन
तेरे ही चरणों में लगा रहे ये मेरा मन
मेरे राम तुम, मेरे श्याम तुम, ओ गुरुवर मेरे
तरस गयीं अँखियाँ दरस को तेरे, ओ गुरुवर मेरे

ब्रह्म ज्ञान का रस तूने सबको पिलाया
भटकते जीवों को शिव से तूने मिलाया
ब्रह्म ज्ञान का रस तूने सबको पिलाया
भटकते जीवों को शिव से तूने मिलाया
मेरे राम तुम, मेरे श्याम तुम, ओ गुरुवर मेरे
तरस गयीं अँखियाँ दरस को तेरे, ओ गुरुवर मेरे
ओ गुरुवर मेरे,
ओ गुरुवर मेरे

Tuesday 24 March 2020

भगत सिंह

शहीदों का जब भी, कहीं ज़िक्र आया,
शहीदों का जब भी, कहीं ज़िक्र आया,
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
शहीदों का जब भी, कहीं ज़िक्र आया,
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया !

गुलामी की बेड़ी में जकड़ा था भारत,
गुलामी की बेड़ी में जकड़ा था भारत,
अहिंसा की बातें लगी जब तिज़ारत,
क्रांति का तूने बिगुल था बजाया,
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया!

साइमन कमीशन से थी लड़ाई,
साइमन कमीशन से थी लड़ाई,
लाला जी ने अपनी जान गँवाई,
जान गँवाई
उनकी शहादत का बदला चुकाया,
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया!

जब जन विरोधी, थे कानून आये,
थे कानून आये.
असेम्ब्ली में दत्त संग, बम थे चलाये,
आंदोलन का जिसने रुतबा बढ़ाया,
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया !

सुखदेव और राजगुरु जैसे साथी,
हँसते हुए चढ़ गए संग फाँसी,
हँसते हुए चढ़ गए संग फाँसी,
सुखदेव और राजगुरु जैसे साथी,
हँसते हुए चढ़ गए संग फाँसी,
इन आँखों में है लहू भर आया,
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया!

शहीदों का जब भी, कहीं ज़िक्र आया,
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया
प्यारे भगत सिंह, है तू याद आया !

-आशुतोष कुमार 

Thursday 18 July 2019

बूँदों का घर


ढूँढा गाँव गाँव, खोजा शहर शहर,

जाने कहाँ गये वो झील, वो पोखर,


जिधर देखा, बस दीवार ही दीवार आई नजर,

आख़िर लूटा किसने, बारिश की बूँदों का घर


ठहरे तो ठहरे कहाँ, बसे तो बसे किधर,

रास्तों पर भटकती, पहुँचती नदी के दर,


समेटे यादें मिट्टी की, अपने ब्यथित मन के अंदर,

नदी में गिरती  पड़ती, मज़बूर जाने  को समन्दर,


थी उसकी अभिलाषा रहूँ, निज निलय में जीवन भर,

अनवरत आँसू उसके, रख देते पयोधि को खारा कर,


फिर जब प्यासी धरती पुकारती तड़प तड़पकर,

नभ में उठती जाती  बूंदें,  रश्मि  रथ पर चढ़कर,

 

महीनों चलता यह क्रम, तब बनते बादल गगन पर,

फिर जाकर बरसती घटायें, सावन भादो  बन कर,


तपती धरणी पे  शीतल बूँदें,  जब पड़ती झम झम कर,

कहीं सीप में बनते मोती, नाचे मोर कहीं छमछम कर,

 

कुछ ही देर में सारी बूंदें,  छा जाती धरा पर,

घर वापसी की खुशी, टिक  पाती ज़रा पर,


खोजती खोजती थक जाती, मिलता नहीं उसका घर,

बाढ़  लाये  तो फिर, आखिर क्रोध जताये क्या कर,


पहल सबको करना होगा, निर्विलम्ब जतन कर,

कैसे भी हो देना ही होगा, बूँदों को एक नया घर

   
-आशुतोष कुमार   
 

Friday 24 May 2019

धन्यवाद भारतवर्ष !

जितना सोचा न था, उससे ज़्यादा दिया है तूने,
मेरे हमवतन, तिरंगे को और ऊंचा किया है तूने!

नयी जोश, नयी सोच, ये नयी रीत है,
अपनी जाति नहीं, सिर्फ़ वतन से प्रीत है!

जो  भ्रस्ट  हैं, वे सदा भयभीत हैं, 
जो ईमानदार हैं, उनकी जीत है!

भगवे से सारा हिन्दुस्तान रंगा है,
हिमालय से निकली नयी गंगा है!

दशकों से हमें सिर्फ़ उम्मीदें मिली है,
अब सहूलियतों की कमल खिली है!

दिलों में स्वार्थ नहीं, राष्ट्रवाद पल रहा है,
दुनिया के नक़्शे पर मेरा देश बदल रहा है!


- आशुतोष कुमार चौधरी 

Friday 17 May 2019

I share

The personal angst, the despairs across times, I bear
The way situations came about, the way things turned out, I share 

Having seen the burden of young son's death on an elderly father,
I feel falling apart into pieces like a mud house which can't adhere.

The bride in palanquin leaving her Dad's door, is unknown to me,
But still, I don't know why the flood of emotions appear. 

Since the day, I came into the holy ascetic's glare,
Night and day, within me, the spiritual ecstasies flare.

Even the air I breathe disturbs my tranquility,
I don't live in this world but still live here.

-Ashutosh Kumar

Thursday 16 May 2019

कहे जाता हूँ

कुछ अपने ग़म, कुछ वक़्त के सितम, सहे जाता हूँ मैं,
कुछ आप बीती, कुछ जग बीती, कहे जाता हूँ मैं !

देखा जो बूढ़े बाप के कंधे, जवान बेटे की रुक्सत का बोझ,
रह रह कर मिट्टी के मकान की तरह ढहे जाता हूँ मैं !

वो डोली जो चौखट से उठने को है, किसी अपने की नहीं,
फिर भी रह रह कर भावनाओं में बहे जाता हूँ मैं !

जब से एक नूरानी निगाह डाली है उस फ़क़ीर ने मुझ पर,
दिन रात रूहानी मस्ती में लहे जाता हूँ मैं !

विश्रान्ति ऐसी कि साँस लेना भी बोझ लगता हैं अब मुझको,
न रहकर भी इस दुनिया में रहे जाता हूँ मैं !

- आशुतोष चौधरी

Tuesday 9 April 2019

होली

यहाँ तक आनेवाली हर रस्ते को सलाम,
साथ निभाने वाली हर दस्ते को सलाम !

ये साक़ी तेरे मयख़ाने को सलाम,
जाम से भरे हर पैमानें को सलाम !

जनम जनम से प्यासी है ये रिंदो की टोली,
ये साक़ी अंगूर के रस में मिला के ला भाँग की गोली !

ख़ाली न जाये तेरे महफ़िल से कोई भी साक़ी,
पिलाता रह जब तक एक क़तरा भी है बाक़ी !

नस नस में हो इक तहलका सा,

कदम भी लड़खड़ाये हल्का सा!

  
ग़म की बीती यादों को मारो गोली,
मायूसी छोड़ो, जो हो ली सो हो ली !



बहार

बादलों पर चलकर सात समंदर पार आई है,
मुद्दतों बाद इस आँगन में  बहार आई है!

बागों में सिर्फ गुलों के मेले नहीं आये,
रंग बिरंगे  पक्षियों  की  कतार  आई  है!
हवा में बस खुशबू के रेले नहीं आये,
पेड़ों  पे जवानी फिर एक बार आई  है!

उन ठिठुरती रातों के दिन अब गए,
धूप  की  नयी  चादर  दो  चार  आई  है!
सिर्फ अरमानो का सूरज ही नहीं आया,
हौसलों की बारिश मूसलाधार आई  है!

-आशुतोष

Saturday 16 February 2019

पुलवामा के शहीद


यूँ तो जाँ हथेली पे ले के घूमते थे हम,
पर इक़ बात का हमें रह गया ग़म,

ग़र लड़ते लड़ते जाते, तो कुछ और बात होती,
बीस तीस मार गिराते, तो कुछ और बात होती!

वो कायर मुँह छुपा कर पीछे से आते हैं,
निहत्थों पर आतंक बरपा के जाते हैं,

बलिदान तो देनी थी हमें, पर यूँ नहीं,
जान तो देनी थी हमें, पर यूँ नहीं !

शांति वार्ता नहीं, अब युद्ध करो,
आतंक का हर मार्ग अवरुद्ध करो,

काट डालो गद्दार सपोलों को,
चलने दो तोप के गोलों को!

बन्दूकें भर भर कस लाओ,
अब एक के बदले दस लाओ,

दो उनको मौत के घाट उतार,
अबकी बार आर या पार!

-आशुतोष कुमार 

Friday 31 August 2018

अटल

तू कल था, तू आज है, तू कल रहेगा !
तू अटल था, तू अटल है, तू अटल रहेगा !

यूँ तो कई आये, कई आएंगे, राजनीती करने वाले,

पर संविधान की गरिमा में, तू अचल रहेगा !

सम्बोधनों और सभाओं में भाषा मर्यादा खो रही,

पर संसद हो या सड़क, तू कवि निश्छल रहेगा !

दल बदल के दल दल में, डूबते जाते सत्ता मोही,

घर घर कमल का फूल खिला, तू एक दल रहेगा !

देशभक्त कहलाने को, कई झूठी कस्मे खाएंगे,

पर माँ भारती के दिल में, तू हर पल रहेगा !

तू कल था, तू आज है, तू कल रहेगा !

तू अटल था, तू अटल है, तू अटल रहेगा !

- आशुतोष के श्रद्धा सुमन

Wednesday 7 February 2018

सरहद

सरहद से हम लौट के, घर आ न पाए!
हाथ में थी बन्दुक, पर चला न पाए !!

वो हम वतन हो के भी, हम पर पत्थर बरसाते रहे ,
हम बेबस इतने, कि उन्हें आँखें भी दिखा न पाए !

वर्दी की लाज बचाने को, हम लात घूंसे भी खाते रहे,
ख़ून खौलता रहा रगों में ,और हम ऊँगली भी उठा न पाए !

क़दम क़दम पर वो छूरा घोपने को पीठ खोजते रहे,
और हम उनकी गोलीओं से, अपना सीना छुपा न पाए !

अचानक जब सामना हुआ दहशतग़र्दों से इस बार,
धड़ें तो सारी काट दी हमने, पर जड़ तक जा न पाए !

अरे सेना को घुसकर लड़ने की अब तो इजाजत दो,
ताकि और कोई नापाक़ आतंकी, फ़िर इस पार न आए !

जा रहा हूँ दुनिया से एक यही प्रार्थना कर,
कि मेरे जाने की खबर, कोई मेरी माँ को न बताए !

जल्द लौट के आऊंगा माँ भारती की गोद में,
ख्याल रहे देशप्रेम का चिराग़, कोई बुझा न पाए !

-आशुतोष

Friday 26 January 2018

गणतंत्र

परतंत्रता के हाथों कई बार राजतंत्र बिकी है,
स्वतंत्रता की ईमारत शहीदों के शीश पे टिकी हैं!

भ्रस्टाचार, जातिवाद, आरक्षण से देश लुट रहा है ,

स्वतंत्र हैं हम, पर गणतंत्र का दम घुट रहा है!

वतन के रहनुमाओं के पास साज़ है, पर आग़ाज़ नहीं,

देखने को इनके सुनहरे पंख है, पर परवाज़ नहीं!

चोरो की ज़मात इकट्ठी हो गयी इस कदर,

भटकता रह न जाये देश अपना दर-ब-दर!

गली गली, घर घर में अब राष्ट्रगान चाहिए,

लहराते तिरंगे को नया आसमान चाहिए !

-आशुतोष चौधरी 

Wednesday 17 January 2018

बिसरत नाहीं


मातु पितु दरस को हृदय अकुलाहीं !
ऊधो, मोहि ब्रज बिसरत नाहीं !!

ग्वाल गोप जहँ  माखन खाहीं !
उन सम कहाँ सखा जग माहीं !!

सुर नर मुनि भजन जहँ गाहीं !
गुरु कृपा की जहँ अविरल छाहीं !


ऊधो मोहि ब्रज बिसरत नाहीं !


मकर संक्रांति

असम में बिहू और पंजाब में लोह्ड़ी की धूम,
गुजरात भी मना रहा उत्तरायण झूम, 
झारखंड में टुसु और तमिल में पोंगल, 
केरल में ओणम करे सबका मङ्गल,
मीठे पकवानों की खुशबू घर घर छाई, 
सब मित्रों को मकर संक्रांति की खूब खूब बधाई !

Thursday 21 December 2017

खोने लगा है

जो यकीं था मुझको कल तक, अब वो खोने लगा है
मुस्कुराता रहता था जो अक्सर, अब वो रोने लगा है !

जब तक हसरतें जवाँ थी, दुनिया हसीं थीं
वादों का जो गुलदस्ता था, अब वो कोने लगा है !

पहले दिन कहो तो दिन थी, रात कहो तो रात थी
फूल झड़ते थे लवों से जो, काँटा बन अब वो चुभोने लगा है !

दो जिस्म एक जान, आत्मा भी एक हो गयी थी शायद
पता नहीं फिर क्यों, अकेले अब वो सोने लगा है !

त्यौहारों के मेले अपने पराये संग चलते थे मेलों के रेले,
दूर नजदीक के सारे रिश्ते, अब वो ढ़ोने लगा है !

मुँह मीठा किये बिना घर से निकलते न थे कभी
खेतों में गन्ने की जगह करेले,  अब वो बोने लगा है !

नयी जवानी नयी उमंग धड़कने भी जवाँ थीं कभी
जाने अनजाने किये सारे गुनाह, अब वो धोने लगा है !

जिसे देवता बनाकर चाहतों ने पूजा था कभी  
मिट्टी का पुतला, फिर से, मिट्टी अब वो होने लगा है !


Monday 4 December 2017

नही रहा


मनस्वियों का सतयुग सा जपना नहीं रहा, 
तपस्वियों का त्रेता सा तपना नहीं रहा !

ढूंढ़ रहा हूँ नक़्शे में एक नया शहर, 
शहर में अपने अब कोई अपना नहीं रहा ! 

तरसते रहे नींद को हम बरसों तलक, 
अब इन आँखों में कोई सपना नहीं रहा ! 

दिल के बाजार में कही बिक गयी लैला , 
अब गलियों में मजनूँ का तड़पना नहीं रहा ! 

काली होती गयी शामें और बुझते गए दीये , 
अब बागों में जुगनुओ का पनपना नहीं रहा ! 

पहाड़ों का सीना तो हम भी चीड़ सकते थे , 
पर किसी की याद में दिल का धड़कना नहीं रहा !

-आशुतोष 

Saturday 25 November 2017

बद्दुआयें

लगता है वो बद्दुआयें असर कर रही हैं
मनके मालाओं से टूट कर बिखर रही हैं

पिरोता हूँ हर रोज इसी उम्मीद पे की निभ जाएगी जिंदगी भर
पर टूट जाती हैं फिर ज्यूँ रखता हूँ बंदगी कर

मनको की जगह अब गाठों ने ले ली हैं
गाँठें बड़ी मनके छोटी हो चली हैं

देखा है लोगो को नए धागे पिरोते
बार बार सपनो की नयी दुनिया संजोते

पर मैंने ही खुद जब ये माला चुना था
अपनों परायों से लड़ कर गुना था

कैसे पल में पराया कर दूँ उस बंधन को
जिन्दा रखा जिसने मोतियों के स्पंदन को

आँखों का हाल रेगिस्तान सा है
रेत नहीं भीतर पर भान सा है

खुली ऑंखें शब से सहर कर रही हैं,
लगता है वो बद्दुआएँ असर कर रही हैं!

Virgin train



Virgin is the train I ride every day,
Keep all luggage by my side every day!
Metro is the paper I pick every day,
Stuffs in the bin make me sick every day! :)

Train Manager wants to check my ticket every day,
Passengers want to chat about cricket every day!
Beautiful ladies looking for seat every day,
Sitting with them rises heart beat every day! :)

Half an hour at least I try to sleep every day,
In the exact time phones beep every day!
Staffs are new friends with I talk every day,
Doors of the toilet I lock every day! :)

I am first on train to get off every day,
For Victoria tube station I Set off every day!
In tube then I get squashed every day,
In sweat the deodorants get washed every day! :)


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This year's National Poetry Day theme is 'Truth'.
Plain talk, No mess,
Truth is fearless.
It does not manipulate,
Neither does it speculate.
Everyone has their own truth,
Be it elderly or Youth.
One sees 6, the other sees 9
Depending on situations both may be fine.
Actual Truth always remains within us,
Sometimes it can create bit of a fuss.
It always comes triumphant at the end,
Follower of Truth is a real Godsend.

जब से

दोस्तों पे ज़माने का असर हो गया जब से,
दुश्मनो से पूछ कर दोस्ती करता हूँ तब से !

प्यार में धोखे का चलन हो गया जब से,
दिल न लगाने की नसीहत देता हूँ तब से !

रिश्तेदारों ने बेबजह दुरी बढ़ा ली जब से,
आईने में खुद को ढूंढता हूँ तब से !

हाथों में पत्थर उठा लिए अपनों ने जब से,
खिरकी के पास खरा रहता हूँ तब से !

हादसे बढ़ गए हैं सडको पे जब से,
बाहर निकलने से डरने लगा हूँ तब से !

यारों के वो महफ़िल बंद हो गए है जब से,
सोशल मीडिया पे एक्टिव हो गया हूँ तब से !

हर तरफ चीखने की आवाज आने लगी है जब से,
ख़ामोशी की आवाज सुनने लगा हूँ तब से !

मंदिरों पे हो गया पुजारियों का बसर जब से ,
दिल में ही अपने खुदा रखता हूँ तब से !

-आशुतोष 

सोचता हूँ क्या होगा


सोचता हूँ
वादों और जुमलों की जंग में आशाओं का क्या होगा ,
बेकाबू होते नेताओं की भाषाओं का क्या होगा !

सोचता हूँ
बॉर्डर पर कट रही सिरों के कफ़न का क्या होगा ,
पेंशन हेतु सैनिको की आमरण अनसन का क्या होगा !

सोचता हूँ
निहत्थों पर चले पुलिस के डंडे का क्या होगा ,
कश्मीर में लहरते पाकिस्तानी झंडे का क्या होगा !

सोचता हूँ
कर्जे से लड़ते किसानों की आत्महत्या का क्या होगा ,
हरित क्रांति के लिए आई सत्ता का क्या होगा !

सोचता हूँ
सूखते फसल और फिर बाढ़ की मार का क्या होगा ,
नदियों और नहरों के जीर्णोद्धार का क्या होगा !

सोचता हूँ
सच्चे संतो पर लगते आरोपों के ब्यौपार का क्या होगा ,
बिकाऊ न्यूज़ परोसती मीडिया के आचार का क्या होगा !

सोचता हूँ
प्रति दिन मजहब में बटते इंसान का क्या होगा ,
दराजों में बंद गीता बाइबिल कुर्रान का क्या होगा !!

खुदा के बन्दे

डर से मुँह छुपाये और हाथों में ताने बन्दूक ,
निर्दोषो को मारकर आतंक मचाने की भूख !

तेरा खुदा औरों के खुदा से है जुदा ,
हूर क्या दोज़ख भी नसीब ना हो ऐसी तेरी सज़ा !

खुदा के बन्दे ये बता कि तूने किस अंदाज में बंदगी को है ढाला ,
शैतान को पत्थर मारने की ऐसी बेताबी कि इंसान को कुचल डाला !

मीडिया

हर मामले में मीडिया आग में घी डालती है,
तिल का तार बना लोगों के ख़ून उबालती है!

समझ गई तेल लेने, जिसे बुद्धिजीवी वर्ग को कान में डाल सो जाना है,
राजनीती का अर्थ सच छुपाकर, सिर्फ विरोधी पर लाँछन लगाना है!

चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आवश्यकता हो राजनीती शास्त्र में पीएचडी,
और ज्वाइन करने से पहले नैतिक शिक्षा की पढाई करे सारे जन प्रतिनिधि !

लेफ़्ट की आज़ादी

चाहा तो बहुत कि तुझपे ऐतवार करूँ कन्हैयाँ,
पर तूने जो कुछ भी कहा उसमें नया क्या था भैया!

गरीबों के पुराने मसीहा - लालू मुलायम या फिर माया,
अलग अलग अंदाजे-बयां में सबने यही था फ़रमाया!

दशकों से यही कह कर तो लेफ़्ट वाले रोटियाँ सेंक रहे हैं,
गरीबी से आज़ादी पाई बेंगाल को सब देख रहे हैं!

सरेआम भारत सरकार को तूने मन भर सुनाई,
और कितनी आज़ादी चाहिए मेरे भाई !

और ब्राह्माणवाद से आज़ादी सुन हँसी आई बहुत जोर,
क्युकी ब्राह्मण आर्थिक रूप से आज़ सबसे है कमजोर!

और जो लोग पूंजीवाद से आज़ादी चाहते थे पहले,
वो विदेशों में खुब छुपाये और बना लिये महलें!

तू भी बैंक से लोन ले, कर धंधा तन कर,
दिमाग लगा और दिखा लोगों को अम्बानी बन कर!

जितना मीडिया तुझे चमका चुकी है लगता नहीं तू कुछ करने वाला है,
क्यूंकि इंतजार ख़तम अब कई पार्टियों से तुझे टिकट मिलने वाला है!

हमारा क्या है पहले अन्ना को देखा फिर केजरीवाल आये,
उसके बाद हार्दिक फिर रोहित और अब तुम हो छाये!

हमें नुक्कड़ पे गप मारने के लिए चाहिए नयी टॉपिक चाय और समोसे,
देश तो कल भी था राम भरोसे और अब भी है राम के ही भरोसे!

विडम्बना

अब के जो ना संभले तो फिर जायेंगे चूक
सावन के आस में क़ब तक धरती उठाये हूक

कही खेत हुई रेगिस्ता इतनी कड़ी है धूप
तो कहीं मई महीना दिखाती बर्फ़बारी का रूप !

पटाखे और बम फोरने से ग़र ख़ुश देवी होतीं,
तो सीरिया में इस तरह इंसानियत ना रोती!

विडम्बना है की धर्म को हम तत्वतः समझते नहीं,
और कोई सदगुरु जो समझा दे उसको तरसते नहीं!

बुलन्दी

कम उम्र में इतनी बुलन्दी भी अच्छी नहीं होती,
सितारों के बीच की चमचमाती दुनिया सच्ची नहीं होती!

या ख़ुदा शोहरत दी थी तो थोड़ी हिम्मत भी दी होती,
फिर रूठ कर इस तरह दुनिया से रुक्सत, वो बच्ची नहीं होती!

बेजुबान

कल इंसानों के बीच कुछ ऐसी साज़िश हुई,
मैं बेजुबान था मुझपर हि डंडों की बारिश हुई!

करता भी क्या मैं आशु, पीटता रहा सरेआम,
एक के हाथ में लाठी थी, एक के हाथ लगाम!

वैसे मेरी तरह कितने ही, जिंदा काट दिये जाते हैं हर रोज़,
निर्दोष गले पे चलती हैं आरी, कोई नहीं करता पर खोज!

चुपचाप जो गटक जाते हैं जिस्म हमारा संवेदना को छोड़,
जग गई ज़मीर उनकी, मेरी टाँग ने मचा दी शोर!

अब क़ोई ना हमें मारेगा, ना ही क़ोई काटेगा,
ना ही क़ोई इंसानों को, इंसानों से बाँटेगा !

देश बेचारा

राजनीती का ख़ेल भी अज़ब हीं न्यारा,
कोई सोनिया का मारा तो कोई मोदी से हारा,

कोई डिग्री के पीछे तो किसीको सूखे का सहारा,
सब के बीच राह तकता रह गया देश बेचारा !

सस्ती चाईनीज ख़रीद अपनी तरक़्क़ी को बस कोसा हमनें,
उम्र भर की कमाई देकर दुश्मनों को बस पोषा हमने !

कितनी भी कर लो नापाक़ पाकी से वार्ता बस नाम भर ही है,
शरहदों पे कुर्बान शहीदों का लहू हमारे सिर भी है !

जितना काला धन पार्टियाँ लगा देतीं हैं दूसरों को हराने में ,
बहारें आ जायें गर उतना लगा दें वादा निभानें में !

एक ओवैसी सबको मिनटों में काट डालना चाहता है,
तो दूसरा भारत माता की जय कहना हराम मानता है,

खुद कट्टर हो दुसरो को असहिस्णु बताने वाले,
जय बोलना गर हराम हो तो माँ तुझे सलाम गा ले,

सच तो ये है की तेरी नीयत में ही खोट है,
क्यूंकि लक्ष्य तेरा सिर्फ़ माइनॉरिटी वोट है!

किसकी थी खता और किसको मिली सज़ा,
मौत बाँटते सियासत-गर्द और कहते हैं हादसा !

Thursday 23 November 2017

नोटबंदी

साठ साल है झेला साथी कुछ दिन और सह लेंगे 
आतंकवाद मिटाने को बिना नोट भी रह लेंगे

बलिदान है रक्त में अपने देश की ख़ातिर सह लेंगे 
नक्सलवाद मिटाने की ख़ातिर बिना नोट भी रह लेंगे

धन कुबेर क्या बनना साथी ख़ुद को ग़रीब कह लेंगे 
काला धन मिटाने को साथी बिना नोट भी रह लेंगे

ऐश मौज़ क्या करना साथी फ़कीरी में ही लह लेंगे 
भ्रस्टाचारियों के मर्दन को बिना नोट भी रह लेंगे

देशभक्ति सिर्फ़ शब्द नहीं ह्रदय में हम गह लेंगे 
माँ भारती की रक्षा हेतु बिना नोट भी रह लेंगे !

नया साल

क्या कुछ पाया, कितना कुछ खोये 
सोच कर नए साल पर बहुत रोये

रोज निकलते थे और कही खो जाते थे 
रात में थकन को ओढ़ सो जाते थे

चमक जूतों की बढ़ाने में, आँखों की रौशनी गवाँते रहे 
देशी घी अब मयस्सर कहाँ, बस ब्रेड ही चबाते रहे

अपने बच्चों की तक़दीर तो बनाते रहे 
पर माँ बाप की तक़लीफ़ भुलाते रहे

रिस्ते इस कदर निभाते रहे 
बस रूठते मनाते रहे

बार बार जख़्म बेवफाई के खाते रहे 
फिर भी उम्मीद नए दोस्तों से लगाते रहे

खिड़की खोल रोज रोशनियों को बुलाते रहे 
नये सूरज की तलाश में रोज दिये जलाते रहे

लम्हें यूँ हि आते और जाते रहे
न जाने क्यूँ हर वर्ष हम नया साल मनाते रहे!

चलते रहे हम

अजब कातिलाना अंदाज है इस जालिम फ़िज़ा का, 
डूबने का समय आता है तब सूरज आसमान पे छाता है !

अपनों की इस दुनिया में कोई अपना सा ना मिला, 
जिंदगी की दौर में जो भी मिला अपनी हक़ीक़त छुपाता सा मिला।

हम अनजान चेहरों के शहर से हो आये हैं,
सिर्फ धूल नहीं लाये तजुर्बा भी साथ लाये हैं।

खुश् हूँ की शहर की सड़कें चतुरंग हो गयीं हैं,
ग़म इस बात का है की दिल की गलियाँ तंग हो गयीं हैं।

किसी से मिलने की ख़ुशी है, किसी से बिछुड़ने का ग़म।
चलने का नाम जिंदगी है, चलते रहे हम ।

लेफ्ट राईट

लगता है दौर-ऐ-शियासत ने नयी राह चुनी है
वरना शेर ने कब कुत्तों की सुनी है !

ये कोई क्रिकेट की पिच नहीं जंग-ए-शियासत है गुरु, 
यहाँ उसूल और वफ़ा बेच कर ही होती है पारी शुरू !

हर्ज़ नहीं ग़र लाखों पशु रोज़ ख़ून के घाट उतार दिये जाते हैं, 
तकलीफ़ ये के हम क्यूँ उनके साथ कुश्ती कर जल्लीकट्टू मनाते हैं !

एक लड़की को एक धमकी मिलती है तो पूरी दिल्ली, पूरी मीडिया, पुरे देश में हल्ला हो जाता है, 
पर केरल में ९ महीने में भाजपा संघ के ११ लोगों का कत्लेआम ख़बरों में कही खो जाता है!

हमारे देश की सेक्युलर मीडिया को लेफ्ट ही हमेशा राईट दिखती है, 
राईट कितना भी राईट हो उनकी सोच में डाईनामाइट दिखती है !

अब तो जवानों को छूट दो की वे अपने साथियों की शहादत का बदला लें कुछ इस कदर से,
कि घर घर से नक्सली निकाल कर ऐसी मौत दें कि मरने के बाद भी रूह काँपती रहे डर से।

कही क़र्ज़ के बोझ तले दब भूख से मर रहा अन्नदाता किसान है,
कही कटप्पा और बाहुबली के पीछे करोड़ो लगा रहा इंसान है,


लगातार होती गरीब बच्चों की मौत और डिजिटल इंडिया बनाने में लगे हैं हम,

मुलभुत सुविधाएं तो मुहैया हैं नहीं, शिवाजी और पटेल की प्रतिमा बनाने में लगे हैं हम !

कही हीरो के पोस्टरों को दूध से यूँ नहलाये मानो भगवान है,
देख सब लगता है सचमुच मेरा देश कितना महान है।

Anti Social Media

Social Media these days has big impact on life,
With reactions more often sharper than knife.

It seems everyone is in for a big rat race,
Trying to underpin the rivalry they face.

Posting bigger holidays & better weekends,
Selfie with new arrivals & latest trends.

Counting the likes and comments in turn,
Higher they go greater the fun.

If you miss to like theirs, they won't like yours,
If you miss to comment, they won't comment of course.

Some people who are not able to make it that big,
Start thinking they are having a life like pig.

As these posts with boasts continuously yield,
Without us realising mental sickness starts to build.

So, Let others go places and be busy,
Life is too short, please take it easy!

-Ashutosh

Wednesday 22 November 2017

क़श्मक़श

दिल और दिमाग़ में चल रही क़श्मक़श ,
निन्यानवे के चक्कर में कहाँ गया फँस ! 

घर बार छूटा रिश्ते नाते सब छूटे ,
मिले तो सिर्फ़ दिखावे के व्यवहार झूठे !

कब की छूट गयी वो बचपन की गलियाँ ,
अब तो राहों में बस सजी कागज की कलियाँ !

वो माँ संग बच्चों का गाना -दो एकम दो , दो दूनी चार ,
अब टु वन ज टू, टू टू ज फोर से हो गए पेरेंट्स बेकार !

वो डंडे से डराना ट्यूशन में सरजी का ,
पहाड़ लगे पढ़ना अब पुस्तक भी मर्जी का !

तब हर बात पे बजती थी दोस्तों की तालियाँ ,
वो बैठक वो कहकहे और वो बेबाक गालियाँ !

वो क्रिकेट के चक्कर मे देना ट्यूशन की बलि ,
अब के गोल्फ से, गिल्ली डंडा ही थी भली !

वो चित्रहार देखना पड़ोसी के घर में भागकर ,
कहना - आया हूँ दोस्त से एक बुक माँगकर !

वो खुले आसमान तले पर्दे पे फ़िल्मों का मज़ा ,
अब तो मल्टीप्लेक्स में जाना भी लगे है सजा !

वो फुटबॉल का मैच और झूमती हुयी बारिश ,
अब तो टीम बनाने को भी करनी परे गुज़ारिश !

वो धागे माँजना धूप में पतंगों के लिए ,
अब बाहर निकलना भी लगे हार्मफुल अंगों के लिए !

वो मुहल्लों को लाँघ जाना कटे पतंगों के पीछे ,
और अब उतरना भी बेकार लगे बालकनी से नीचे !

एक उमँग उठती थी कटी पतंगों की हर अंगराई पर ,
अब नज़रे उठती हैं सिर्फ़ दूसरों की बुराई पर !

वो स्कूल के डेस्क पर ज़माना गानों की महफ़िल ,
अब अग़र ग़लती से भी गुनगुनाओ तो कहलाओगे ज़ाहिल !
 
वो माँ का प्यार, भाई बहनों का दुलार और पिताजी की मार ,
काश वापस आ जाये वो दिन फिर से यार !

वो गलियाँ अक्सर मुझे बुलातीं हैं ,
वो मुहल्ले की नुक्कड़ अब भी याद आती हैं !

सोचता हूँ सब छोड़ उस गली का हो जाऊँ ,
उन बचपन की लम्हों को फ़िर से जी जाऊँ !

दिल और दिमाग़ में चल रही क़श्मक़श ,
अब जैसे भी हो यहाँ से निकल जाऊँ बस !

जिंदगी

कही दो वक़्त की रोटी को है मोहताज़ जिंदगी ,
कही ब्यंजन पकवान खा बीमार जिंदगी.

कही सड़को पे पलती नवजात जिंदगी ,
कही महलों में बसती ख़ुशहाल जिंदगी.

कही दो बूँद पानी को तरसती जिंदगी ,
कही मयखानो में जाम बन छलकती जिंदगी.

कही एक सिक्के का करती इन्तेजार जिंदगी ,
कही धन के अंबार लुटाने को तैयार जिंदगी.

कही प्यार ढूँढ़ती नौजवान जिंदगी ,
कही तलाक़ मांगती परेशान जिंदगी.

कही एक नौकरी के लिए लगाती क़तार जिंदगी ,
कही मुँहमाँगे दाम पाती ब्यापार जिंदगी. 

कही एक औलाद पाने को भटकती जिंदगी ,
कही गर्भपात करा मटकती जिंदगी. 

कही दहेज़ के ज़ोर पर जलती जिंदगी ,
कही घर जमाई पर पलती जिंदगी.   

कही दोस्तों पे जान लुटाने को तैयार जिंदगी ,
कही दोस्तों से जान छुड़ाने को लाचार जिंदगी. 

कही कड़कड़ाती धूप में तलवे जलाती जिंदगी ,
कही राहों में मखमली चादर बिछाती जिंदगी.

क्यूँ हैं इतने रंग जुदा दिखाती जिंदगी ,
काश सब का जीवन एक सा बनाती जिंदगी. 

तेरा रस्ता देख रहा हूँ

जानता हूँ के तू नहीं आयेगा ,
पर तेरा रस्ता देख रहा हूँ अब भी !

हर सुबह तुझे भुलाने का भ्रम करता हूँ ,
पर हर शाम तेरी याद लेकर चली आती है !

जीवन की राहों में हैं हजारों ग़म ,
पर हर ग़म अब मुझे छोटा लगता है !

जब भी कभी कोई दिल दुखाता है ,
तेरी यादों के दामन से लिपट जाता हूँ !

आँखों से बहते अश्क़ कह उठते हैं ,
के मेरे इस हालात की वजह तू है !

पर ना जाने क्यूँ चाहकर भी मैं तुझसे नफ़रत नहीं कर पाता ,
ना जाने क्यूँ चाहकर भी मैं तुझे भुला नहीं पाता !

जानता हूँ की तूने ही मुझे ठुकराया था ,
पर अब भी तेरी यादें ही शुकुन देती है !

क्यूँ जीये चला जा रहा हुँ इसी उम्मीद पे ,
की ऐसी एक शाम आयेगी जो तुझे अपने साथ लाएगी !

न जाने क्यूँ अब भी दिल में एक आस लगी है ,
तुझसे मिलने की अमिट प्यास लगी है !

जानता हूँ की तू मुझसे जुदा होकर भी ख़ुश है ,
पर मैं तेरा रस्ता देख रहा हूँ अब भी !

हर पल दिल में एक अजीब सी कश्मक़श है ,
की काश कोई हवा का झौंका तेरी खुशबू लाये !

हर पल मन में ये अगन है ,
के काश कोई कोयल तेरी ख़बर सुनाये !

जानता हूँ की सारे रस्ते कबके बंद हैं ,
पर मैं तेरा रस्ता देख रहा हूँ अब भी !

तेरा रस्ता देखते देखते एक दिन थम जायेंगी ये साँसे ,
पर देख़ लेना बंद नहीं होंगी ये ऑंखें !

क्यूंकि तेरा रस्ता देख रहा हूँ मैं अब भी ,

और तेरा रास्ता देखता रहूँगा मैं तब भी !

कैसा कराटे

मेरे दोस्त विनय प्रकाश
सुबह सुबह पहुँचे मेरे पास

बोले तुम हो कराटे के ज्ञाता
मुझे तो पंच चलाना भी नहीं आता

मुझे भी तुम कुछ सिखला दो ना
कैसे भी हो ब्लैक बेल्ट दिलवा दो ना

पैसा जो लगे मैं दे सकता हूँ
हौसला इतना बुलंद मैं रखता हूँ!

मैंने कहा पैसे पर सब कि नीयत ललचायी
पर मेरे पास नहीं ऐसे सेन्साई

सीखना है तो पुरुषार्थ कर सीखो
निरंतर अभ्यास कर सीखो

कंडीशनिंग करो बुंकाई करो साथ में करो काता
फिर देखो प्रैक्टिस मैं कैसा मजा है आता!

यह तो भारत की पुरानी युद्ध शैली थी
जो बाद में चीन जापान में फैली थी

चलो खूब मेह्नत करे पसीना बहाएं
स्वस्थ्य और मजबूत समाज बनाये

इस कला को फिर घर घर पहुँचाये
भारत की खोयी कला वापस ले आयें !!

Tuesday 21 November 2017

तुस्टीकरण

पाकिस्तान में होनेवाले हर ब्लास्ट की इल्ज़ाम हिन्दुस्तान पे आती है,
और गुरमेहर तेरे पिता को पाकिस्तान नहीं लड़ाई मार जाती है ?

भारत के टुकड़े करने वालों के लिए भी कुछ लिख देती,
किन कारणों से वो सही हैं जरा हमें भी सीख देती !

ऐसे ही आज़ादी मांगते मांगते कन्हैया जी छा गये, 
लगता है उन्हीं के नक़्शे-कदम तुम्हें भी भा गये !

वैसे भी देखभक्ति की बात करने वाले सांप्रदायिक हो जाते हैं, 
और तुस्टीकरण की राजनीती करने वाले लिबरल कहलाते हैं !

विश्व-विद्यालयों से राजनितिक पार्टियाँ हटनी चाहिए, 
ये शिक्षा का मंदिर है यहाँ सिर्फ विद्या बटनी चाहिए !

पानी


धरती को यूँ रौंदा हमने, शीतल बयार मंद हो गये,
सूरज की तपिश बढ़ती गयी, बादल बनने बंद हो गये।


सूखे कुएं, सूखे पोखर, सुख गई सारी नदियाँ अब,
पानी की तलाश में बीतेंगी आनेवाली सदियाँ अब !


चलो कुछ इस कदर शहर में जंगल बसायें,
कि सृष्टि स्वयं समंदर से पानी खींच बरसाये !

बंधन

मेरी नजरों में ये दोस्त तू ख़ुदा था, 
क्यूंकि रंग तेरा ज़माने से जुदा था,

कौन सी कमी मेरी नागवार गुजरी की तू रुठ गया,
गाँठ की गुंजाइश भी अब नहीं, जब बंधन ही ये टूट गया!

अनुराग

करने को पूरे अरमान, अपनों के मन के,
हमारी जिंदगी में आये, तुम बहार बन के !
नेमत तुम पितरो की, तुम ईश्वर का वरदान,
हर मुस्कान पे तेरी, जन्नत की खुशियां कुर्बान !
है दुआ ये मेरे दिल की, जन्मदिवस पे तेरे,
ग़म की न बदरी छायें कभी, बरसे सुख घनेरे !
आकाशगंगा में जब तक सितारे रहें,
प्रेम अनुराग से भरी तेरी जिंदगानी रहे !

सत्त्व

न जाने क्यों गांव का पीपल रूठता जा रहा है,
घर घर से बुजुगों का साया उठता जा रहा है।
बड़े बूढ़े क्या गए देवत्व चला गया,
उनके साथ मेरे गांव का सत्त्व चला गया !
हमारी गलतियों की ऐसी सजा न कर विधाता,
उन कर कमलो की कृपा हम पर रहने दे ये दाता।


दुरी


कल सुना था गाँव का एक बच्चा भूख से मर गया,
आज पता चला शहर में अनाज गोदाम में सड़ गया !

एक तरफ़ चाँद और धरती की दुरी घटती जा रही है,
दूसरी तरफ़ अनाज और पेट की दुरी बढ़ती जा रही है !

कही क़र्ज़ के बोझ तले दब भूख से मर रहा अन्नदाता किसान है,
कही कटप्पा और बाहुबली के पीछे करोड़ो लगा रहा इंसान है!

कही हीरो के पोस्टरों को दूध से यूँ नहलाये मानो भगवान है,
देख सब लगता है सचमुच मेरा देश कितना महान है।

वो मिट्टी वाले दिन


जाने कहाँ गए वो गांव के मिट्टी वाले पल ,
बात बात पे करते कट्टी मिठ्ठी वाले  पल!

जाड़ों में घूरो को घेर के तपने वाले पल,
ठंडे पानी से नहाकर कंपने वाले पल!

आग पे रखकर पके हुए वो मक्के वाले पल
नारंगी के गेंद पे लगते छक्के वाले पल!

आम के पेड़ों पे चलते वो ढेलों वाले पल,
पटरी पे रख के कान सुने, वो रेलों वाले पल!

तपते हुए रस्तों पे उड़ते धूलों वाले पल,
खेतों में बोयी सरसो के फूलों वाले पल!

बाग में बैठ के लीची दम भर खाने वाले पल,
शाम हो जाने पर भी घर नहीं जाने वाले पल!

झूमती बारिश में फ़ुटबाल के मैचों वाले पल,
बाउंड्री लाइन के ऊपर छूटते कैचों वाले पल!

जाने कहाँ गए वो गाँव के मिट्टी वाले पल,
पीपल के पत्तों पे लिखे चिट्ठी वाले पल!

दोहे -गीता सार

      आगे  की  चिंता  करे,  बीते पर  क्यों रोय भला हुआ होगा भला, भला यहॉँ सब होय।   लेकर कुछ आता नहीं,  लेकर कुछ न जाय  मानव फिर दिन रात ही,...